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दीवाली पर व्यापार 2015–2025: 10 सालों में कितना हुआ खरीद-बिक्री का कारोबार

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दीवाली पर व्यापार 2015–2025: 10 सालों में कितना हुआ खरीद-बिक्री का कारोबार (₹ और Billion $ में)

दीवाली — रोशनी के साथ व्यापार का पर्व

भारत में दीवाली सिर्फ दीप और मिठाइयों का त्योहार नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को गति देने वाला सबसे बड़ा व्यापारिक मौसम भी है।
हर साल इस त्योहार के दौरान गोल्ड, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, मिठाइयाँ, फर्नीचर और उपहारों की बिक्री में तेज़ी आती है।
पिछले 10 वर्षों में दीवाली का व्यापार लगभग 15 गुना बढ़ा है — जिससे यह दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते festive markets में शामिल हो गया है।

10 वर्षों का व्यापारिक रुझान (2015–2025)
वर्ष अनुमानित कारोबार (₹ करोड़) अनुमानित कारोबार (Billion USD) मुख्य कारण

  • 2015 30,000 ≈ $4.5B मंदी के बाद बाज़ार की वापसी
  • 2016 38,000 ≈ $5.7B नोटबंदी से पहले नकद खरीदारी
  • 2017 43,000 ≈ $6.4B GST लागू होने के बाद स्थिरता
  • 2018 50,000 ≈ $7.5B ऑनलाइन-ऑफलाइन बिक्री में संतुलन
  • 2019 60,000 ≈ $9B छोटे शहरों में खरीदारी का उछाल
  • 2020 72,000 ≈ $10.8B कोविड के बाद बाजार की बहाली
  • 2021 1,25,000 ≈ $18.8B रिकॉर्ड तोड़ बिक्री
  • 2022 2,75,000 ≈ $41.3B स्वदेशी उत्पादों की भारी मांग
  • 2023 3,80,000 ≈ $57B उपभोक्ता खर्च में तेजी
  • 2024 4,25,000 ≈ $63.7B “वोकल फॉर लोकल” अभियान का प्रभाव
  • 2025 6,05,000 ≈ $72.6B अब तक का सबसे बड़ा दीवाली व्यापार

गहने व सोना: कुल बिक्री का लगभग 10%

इलेक्ट्रॉनिक्स व घरेलू उपकरण: 15%

कपड़े, फर्नीचर व उपहार: 20%

मिठाइयाँ व FMCG उत्पाद: 12%

होम डेकोर व पूजा सामग्री: 10%

स्थानीय उत्पाद (हैंडमेड, खिलौने, आदि): 33%

2025 में लगभग 87% भारतीय उपभोक्ताओं ने “मेड इन इंडिया” सामान खरीदा।
ऑनलाइन खरीद बढ़ी, लेकिन कुल कारोबार का लगभग 80% अभी भी ऑफलाइन मार्केट्स से हुआ।

इतनी तेज़ बढ़ोतरी क्यों हुई?

स्वदेशी ब्रांड्स की लोकप्रियता – लोकल प्रोडक्ट्स पर भरोसा बढ़ा।

डिजिटल भुगतान (UPI) का प्रसार – हर कोई आसानी से खरीदारी कर सका।

ऑफर और डिस्काउंट्स की बाढ़ – ई-कॉमर्स कंपनियों ने ग्राहकों को आकर्षित किया।

ग्रामीण और टियर-3 शहरों की भागीदारी – छोटे शहर अब बड़े बाजार बन चुके हैं।

सेवा उद्योग की वृद्धि – पैकेजिंग, डिलीवरी, लॉजिस्टिक्स ने भी अरबों डॉलर कमाए।

खरीद-बिक्री का संतुलन

भविष्य की संभावनाएँ

निष्कर्ष

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